ध्यान का अर्थ क्या है? What is Dhyana in hindi
ध्यान शब्द संस्कृत के शब्द ‘धी‘ से लिया गया है, जिसका अर्थ है चिंतन या विचार में व्याप्त होना।
महर्षि पतंजलि के अनुसार ध्यान को इस प्रकार बताया गया है।
“संकेंद्रित वस्तु पर फोकस देने की एक सतत प्रवाह को ध्यान कहा जाता है।”
ध्यान को सांख्य स्कूल ऑफ फिलॉसफी में “ध्यानम् निर्विशेषम् मानव” के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसका अनुवाद “सभी परेशान और भावनाओं, विचारों और इच्छाओं से मन की मुक्ति” के रूप में किया गया है। ध्यान हमेशा धारणा, यानी एकाग्रता से शुरू होता है; एकाग्रता के माध्यम से मन स्थिर होने लगता है।
ध्यान के नियम ।Dhyana rules in hindi
ध्यान के नियम में कुछ चीजों का होना बहुत जरूरी है।
- स्थान: प्राचीन शास्त्रों में अच्छे ध्यान के लिए पीपल के पेड़, मंदिर, पवित्र स्थान, नदी तट, गुफा, जंगल जैसे विभिन्न स्थानों पर जोर दिया गया है। अभ्यास के लिए जगह का चयन करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक पर्यावरण है। स्थान का परिवेश शांत और स्वच्छ होना चाहिए।
- ऋतु: वसन्त और शरद – ये दो ऋतुएँ अभ्यास के लिए उचित हैं क्योंकि बहुत अधिक ठंड और गर्मी हवा में ध्यान आसानी से नहीं लगाया जा सकता है.
- समय: ध्यान चार समय में किया जा सकता है। ये सूर्योदय (ब्रह्म मुहूर्त) से पहले होते हैं; दोपहर, सूर्य अस्त और मध्य रात्रि। लेकिन सबसे अच्छा समय ब्रह्म मुहूर्त माना जाता है।
- आहार: योग के अभ्यास के दौरान पेट पूरी तरह भरा नहीं होना चाहिए। यह भोजन से आधा भरा होना चाहिए, एक चैथाई जल से और शेष हवा से। प्राचीन वेद तीन प्रकार के भोजन की व्याख्या करते हैं- सात्विक, राजसिक और तामसिक। सात्विक आहार इनमें सबसे अच्छा है।
ध्यान के लिए योग अभ्यास
ध्यान के लिए प्रयोग किए जाने वाली प्रमुख योग अभ्यास निम्नलिखित है।
सिद्धासन
पद्मासन
सुखासन
वज्रासन
ध्यान के प्रकार। Types of Dhyan in hindi
हिंदू, मुस्लिम, इसाई, सिख, जैन, बौद्ध, यहूदी हर धर्म में ध्यान प्रार्थना का एक अहम हिस्सा है। प्रख्यात संतों और अन्य ने ध्यान को अलग अलग तरीके से, प्रमुख रूप से अपने अनुभव के आधार पर व्याख्यायित किया है।
- बौद्ध धर्म में ध्यान- बौद्ध धर्म दो पारंपरिक ध्यान रूपों को प्रस्तुत करता है- प्रथम को समता ध्यान कहा जाता है इसका उद्देश्य एकाग्रता विकसित करना है। दूसरे को विपश्यना ध्यान कहा जाता है इसका उद्देश्य समझ को विकसित करना है।
- जैन धर्म में ध्यानः प्रेक्ष्य ध्यान- प्रेक्षा का शाब्दिक अर्थ है ‘देखना’। इसका मतलब है कि मन का ध्यान भीतर की ओर एकत्र करना तथा निरंतर अपने भीतर की ओर देखना जिससे अभ्यासकर्ता को नाम और रूप की दुनिया से मुक्त होने और पूर्ण सत्य चेतना में रहने का अवसर मिलता है। इस ध्यान में जिन चरणों का पालन किया जाता है वह हैं श्वास प्रेक्षा (श्वास पर ध्यान केंद्रित करना), अनिमेष प्रेक्षा (वस्तु पर ध्यान), शरीर प्रेक्षा (शरीर का बोधन एवं ध्यान), वर्तमान प्रेक्षा (वर्तमान का बोध एवं ध्यान)।
- श्रेष्ठ ध्यान – इसका अर्थ है श्रेष्ठ पर ध्यान। आने वाले और बाहर जाने वाले प्राण पर एकाग्रता के साथ एक प्रकार से निरंतर और विशेष बीज मंत्र का पाठ व लगातार दोहराव। मन और विचार, श्वास (जो जैविक शक्ति है) के साथ विचरण करते और चिह्नित किए जाते हैं।
घेरण्ड संहिता के अनुसार ध्यान के प्रकार
- स्थूल ध्यान- अपने गुरू अथवा ईश्वर (इष्ट देवता) की छवि का मनन करना स्थूल ध्यान कहलाता है। स्थूल ध्यान की वस्तु स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होती है। यह प्रारंभिक अभ्यासकर्ताओं के लिए है।
- सूक्ष्म ध्यान- इस ध्यान में ध्यान की वस्तु कुंडलिनी, सर्प शक्ति, है। आंखों के क्षेत्र को पार कर जाने के बाद यह फिर अदृश्य हो जाती है।
- ज्योर्तिमय ध्यान- तेजोध्यान स्थूल ध्यान से 100 गुना श्रेष्ठ कहा जाता है। इस ध्यान में ध्यान कर रहा योगी एक प्रकाश को देखता है और उस पर अपना मन केंद्रित करता है।
ध्यान के लाभ। Dhyan benefits in hindi
ध्यान एक महत्त्वपूर्ण योगिक तकनीक है। ध्यान का नियमित अभ्यास, ध्यान करने वाले को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष अनेक लाभ प्रदान करता है।
- ध्यान न केवल अभ्यासकर्ता को अनेक मानसिक समस्याओं को नियंत्रित करने में सहायता करता है बल्कि आध्यात्मिक अनुभव के सर्वोच्च शिखर तक पहुँचने में भी सहायता करता है।
- नकारात्मक भावनाएँ जैसे भय, क्रोध, अवसाद, दबाव एवं तनाव, घबराहट, व्यग्रता, प्रतिक्रिया, चिंता इत्यादि कम हो जाते हैं और शांत मनोदशा विकसित होती है।
- अभ्यासकर्ता का समग्र व्यक्तित्व और दृष्टिकोण बेहतर हो जाता है और वह जीवन की विषम परिस्थितियों का सामना बेहतर ढंग से कर पाता है।
- ध्यान का अभ्यास मनुष्य को एक सकारात्मक व्यक्तित्व, सकारात्मक विचार को धारण करने वाला और सकारात्मक कार्य करने वाला बना देता है।
- ध्यान एकाग्रता, स्मरण शक्ति, आत्मविश्वास, विचारों की स्पष्टता, इच्छा शक्ति, मस्तिष्क की ग्रहण शक्ति में वृद्धि करता है और थकान के स्तर को घटाता है।
- नियमित रूप से ध्यान करने वाले योगी चुंबकीय और आकर्षक व्यक्तित्व विकसित कर लेते हैं। उसके संपर्क में आने वाले उसकी मधुर वाणी से, प्रभावशाली वाणी से, तेजस्वी नेत्रों, चमकदार वर्ण, मजबूत स्वस्थ शरीर, अच्छे व्यवहार, गुण और दैवीय स्वभाव से अत्यधिक प्रभावित हो जाते हैं।
- अपने योग सूत्र में महर्षि पतंजलि ने कुछ शक्तियों का उल्लेख किया है जिन्हें एक साधक एकाग्रता और ध्यान से प्राप्त कर सकता है। उदाहरण के लिए कण्ठ के रिक्त स्थान पर, निरंतर और लंबे ध्यान के द्वारा योगी प्यास और भूख का अतिक्रमण कर लेता है।
- ऐसे अनेक वैज्ञानिक अध्ययनों का निष्पादन किया गया है जिनके द्वारा प्राचीन विद्वानों के दावों की पुष्टि की गई है। अध्ययनों से यह उद्घाटित हुआ है कि ध्यान का अनुप्रयोग न केवल स्वास्थ्य के पुनर्नवीकरण के लिए प्रभावकारी है बल्कि यह आज के समाज द्वारा अनुभव की जाने वाली तनावपूर्ण परिस्थितियों से निपटने में भी अत्यधिक सहायक है।
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